
सुप्रीम कोर्ट और उसके जजों को बेइज़्ज़त तो कर रहे हैं वर्मा और कांग्रेस – लेकिन राहुल और वर्मा मूल प्रश्न का जवाब देने से बच क्यों रहे हैं ?
राहुल गाँधी और कांग्रेस के नेता, जिनमे कपिल सिब्बल भी शामिल हैं, बराबर अलोक वर्मा के खिलाफ हुई कार्रवाई को ले कर मोदी पर हमला कर रहे हैं और उनेके CBI से हटाये जाने को राफेल जांच से जोड़ कर शुरू से दावा कर रहे हैं. कहना ये है कि वर्मा जांच करना चाहते थे, इसलिए मोदी ने उनको हटा दिया.
आज अलोक वर्मा ने भी त्यागपत्र देते हुए कांग्रेस की भाषा बोली कि CBI की साख को बरबाद करने की कोशिश की जा रही है जबकि CBI को बिना किसी बाहरी दबाव के काम करना चाहिए –मैंने तो सीबीआई की साख बनाये रखने की कोशिश की मगर पूरी प्रक्रिया को उल्टा कर मुझे ही निदेशक पद से हटा दिया गया –अलोक वर्मा की गतिविधियों से साफ़ जाहिर होता है कि वो खुद बाहरी दबाव में काम कर रहे थे, ये बताने की कदापि जरूरत नहीं है, किसका बाहरी दबाब था उनके उपर.
राहुल गाँधी, कांग्रेस के नेता और अलोक वर्मा कोई भी एक सीधी सी बात का जवाब नहीं दे रहे हैं कि –राहुल गाँधी को, जो बार बार कह रहे हैं कि वर्मा राफेल की जांच शुरू करने वाले थे, जिससे बचने के लिए मोदी ने उनको हटा दिया, उनको कैसे पता चला कि वर्मा जांच शुरू करने वाले थे ?
अलोक वर्मा को भी ये बताना होगा कि राहुल गाँधी और प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी की तिकड़ी को भी इस बात अहसास कैसे हुआ कि वो राफेल पर क्या करने वाले थे इस तिकड़ी की शिकायत को ले कर ?
अलोक वर्मा और कपिल सिब्बल समेत कांग्रेस के नेता सीधे मोदी पर वर्मा के खिलाफ द्वेष की भावना से करवाई करने का आरोप लगा रहे हैं –जबकि CVC की जांच में प्रथम दृष्ट्या वर्मा को ही दोषी माना गया है, जो उनको हटाने का आधार बनी –ये सभी लोग इन तथ्यों को जानबूझ कर मोदी के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिये जान कर नज़रअंदाज कर रहे हैं.
1) CVC की जांच, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नामित किये गए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज, एके पटनायक की निगरानी में हुई थी –
2) सुप्रीम कोर्ट ने अलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने के फैसले के खिलाफ फैसला दे कर उनके साथ न्याय ही किया था .
3) चयन समिति की बैठक सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार ही हुई, जिसमें सीजेआई रंजन गोगोई के प्रतिनिधि के रूप में जस्टिस ए के सीकरी शामिल हुए –
4) चयन समिति के 3 में से 2 सदस्यों ने, यानि बहुमत ने वर्मा को सीबीआई के डायरेक्टर पद से हटाने का फैसला किया –जस्टिस वर्मा और पीएम ने वर्मा के खिलाफ फैसला दिया और खड़गे ने पक्ष में.
हर मसले पर सुप्रीम कोर्ट के जज वर्मा के लिए गए फैसलों में शामिल थे लेकिन राहुल गाँधी, उनकी ब्रिगेड और अलोक वर्मा इस तरह सुप्रीम कोर्ट और उसके जजों का अप्रत्यक्ष अपमान कर रहे हैं और उनकी निष्पक्षता पर सवालिया चिन्ह लगा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने चयन समिति की बैठक एक हफ्ते में बुलाने का आदेश दिया था — वर्मा को CBI डायरेक्टर का पदभार ग्रहण करने के बाद कुछ भी कार्रवाई करने से पहले चयन समिति के निर्णय की प्रतीक्षा तो करनी चाहिए थी.
मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया और ज्वाइन करते ही अपने करीबी 13 अधिकारियों के ट्रांसफर कर दिए –जबकि उनको पता था कि कल अगर वो हटा दिये गये तो उनके द्वारा किये गए ट्रांसफर भी रद्द कर दिए जायेंगे और वो कर दिए गए — खुद वर्मा ने अपने आप को पक्षपाती, द्वेषपूर्ण भावना से काम करने वाला सिद्ध कर दिया –खुद ही वर्मा जगहंसाई का पात्र बने.
जितना हो गया उतना हो गया, बेहतर है अब अलोक वर्मा आगे के लिए कांग्रेस की तरफ से खेलने से बचें –अगर आगे कानूनी कार्रवाई हुई तो कोई बचाने की स्तिथि में नहीं होगा –संजीव भट्ट को देख कर सीख ली जा सकती है.
(सुभाष चन्द्र)
11/01/2019
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