
इसी माह दिसंबर में आज से सोलह वर्ष पूर्व हुआ था संघ के मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का संयोजन..
जानते हुए भी कि संघ के स्वयंसेवक देश के किसी भी कोने में होने वाली किसी भी प्राकृतिक आपदा में बिना किसी मीडिया कवरेज में आये हुए काम करते हैं..और पीड़ितों की सेवा के दौरान वे हिन्दू मुस्लिम ईसाई नहीं बल्कि सिर्फ इंसान देखते हैं, कुछ लोग संघ को निरंकुश और अल्पसंख्यक विरोधी सांप्रदायिक संगठन के रूप में प्रचारित करते हैं. संघ के स्वयंसेवक किसी दिखावे में नज़र नहीं आते, वे मात्र सच्ची मानव सेवा और राष्ट्र सेवा के लिये अपना जीवन समर्पित करते हैं. चाहे वो कश्मीर हो या केरल, सेवा करते समय उनके लिए सभी लोग इंसान ही हैं, हिन्दू या मुसलमान नहीं. अतः इस तरह के लोगों को मानव नहीं, महामानव कहा जाना चाहिये.
महामानवों के इस सर्वोच्च संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को हमेशा कांग्रेस, वाम दलों और विपक्षियों व सेक्युलरों के निशाने पर होता है. संघ को न केवल मुस्लिम विरोधी माना जाता है बल्कि कट्टरपन्थ का प्रतीक भी माना जाता है. यह अचरज की बात नहीं है, यह पिछले सत्तर सालों में किये गये कांग्रेसी षडयन्त्र का प्रतिफल है.
संघ जो एक प्रखर राष्ट्रवादी संगठन है और मानवतावाद का सर्वोत्कृष्ठ उदाहरण है उसे कांग्रेस ने मानवता का दुश्मन और कातिलों के गैंग के रूप में प्रचारित किया. उस समय सोशल मीडिया नहीं होता था, मीडिया भी उतना सशक्त और सुनियोजित नहीं था अतएव कांग्रेस को अपने हर राष्ट्रविरोधी साजिश में सफलता मिल जाया करती थी. देश के लोग न भोले थे न मूर्ख – उनको गुमराह करके राष्ट्रीय ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर संघ की छवि पर कीचड़ फेंकने की हक कोशिश की कांग्रेस ने.
संघ सनातन धर्म के स्वयंसेवकों से निर्मित है और इसकी विचारधारा में भी सनातन धर्म ही परिलक्षित होता है. सनातन धर्म की विचारधारा में मानवता को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है. अतएव संघ ने भी मानवता को अपनी दृष्टि और अपना दर्शन बनाया है. इसलिए शर्म आती है उन अज्ञानियों की सोच पर जो संघ को कट्टरपंथी बताते हैं.
संघ कट्टरपंथी होता तो कश्मीर में बाढ़ में मारे जा रहे मुसलामानों को बचाने में जान की बाज़ी नहीं लगा देते. संघ कट्टरपंथी होते तो उस प्रदेश में जहां चौराहे पर गौ माता की ह्त्या करके उनके मांस से बने भोजन का भक्षण होता है, वहां के बाढ़ पीड़ित लोगों को बचने में और उनकी मदद करने में दिन रात एक नहीं कर देते!
संघ ने बाकायदा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच बनाया है. वर्ष 2002 में गठित हुए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संयोजक मुहम्मद अफजल हैं और इसके मार्गदर्शक इंद्रेश कुमार हैं. यह माह दिसंबर ही वह माह है जब मुस्लिम राष्ट्रीय मंच अस्तित्व में आया था और
संघ के इस अहम् हिस्से में राष्ट्रवादी मुसलामानों को जोड़ा गया है. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच राष्ट्रवादी मुस्लिमों का संगठन है. यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा का संगठन तो है किन्तु यह संघ से अलग हो कर कार्य करता है. इसने विश्व के सर्वोत्तम मुसलामानों का संगठन होने का भी गौरव अर्जित किया है.
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की मूल विचार धारा हिंसा विरोधी है और शांति की प्रेरणा से उन्मुख है. इसके सदस्य राम, कृष्ण इत्यादि इष्टों को अपना पूर्वज मानते हैं, इतना ही नहीं ये लोग मांसाहार विरोधी भी हैं और सभी को मांस भक्षण से बचने की सलाह भी देते हैं.
जब मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के लोग इस्लाम को शांति का मजहब कहते हैं तो निस्संदेह विशवास करने की इच्छा होती है. क्योंकि यह मंच किसी भी ढंग की हिंसा को समर्थन नहीं देता है. और तो और यह मंच जानवरों की कुर्बानी कहे जाने वाली ह्त्या के भी विरुद्ध हैं.
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई आपस में हैं भाई भाई – यह इस संगठन का नारा है. इस संगठन के सदस्य देश को मजहब से पहले रखते हैं और धर्मनिरपेक्ष भारत का समर्थन करते हैं. भारत में हिन्दू और मुस्लिम समुदायों को एक साथ मिलाने के लक्ष्य को सामने रख कर इस सराहनीय मंच का संयोजन किया गया है.
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के सदस्यों एवं पदाधिकारियों का मानना है कि संघ और इसके सहयोगी संगठनों को लेकर मुस्लिम समाज में फैलाई गई भ्रांतियां अनुचित हैं. मंच ने गौ वध को प्रतिबंधित करने की मांग को लेकर संघ का समर्थन किया है.
(पारिजात त्रिपाठी)