
राम सुमिर राम सुमिर एहि तेरो काज है..
मायाकौ संग त्याग, हरिजूकी सरन लाग..जगत सुख मान मिथ्या, झूठौ सब साज है! ये पंक्तियाँ हैं गुरु नानक देव जी की.
23 नवम्बर है एक महान दिवस. यह दिवस एक महान अवतारी पुरुष, जिन्होंने पूरे विश्व को आलोक प्रदान किया है, का जन्म दिवस बन कर महान हो गया है. गुरु नानक देव यद्यपि सिख गुरु हैं तथापि सभी धर्मों में और सारी दुनिया में उनको आदर-सत्कार और सम्मान प्राप्त होता है.
गुरु नानक देव का जन्म 15 अप्रैल 1469 को हुआ था. वे सिखों के प्रथम गुरु हैं. गुरु नानक देव को उनके भक्त वृन्द नानक जी, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह जी आदि नामों से पुकारते हैं. आप यदि लद्दाख या तिब्बत जाएँ तो गुरु नानक को वहां नानक लामा के नाम से पुकारा जाता है.
गुरु नानक देव का व्यक्तित्व अत्यंत विशाल और प्रेरणास्पद है. उनके व्यक्तित्व में एक गुरु, एक विचारक, एक दार्शनिक, एक योगी, एक सच्चा गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु – इत्यादि समस्त गुण दर्शनीय हैं. गुरु नानक देव का एक रूप सूफी संत का भी है जो सर्वधर्म सम भाव के समर्थक संत का रूप है. इतिहासकार उन्हें सूफी कवि के नाम से भी सम्बोधित करते हैं.
गुरु नानक देव ने एक रावी नदी के किनारे तलवंडी ग्राम में एक खत्री परिवार में जन्म लिया था. यह तिथि थी कार्तिकी पूर्णिमा की. गुरु जी की माता का नाम तृप्ता देवी और पिता का नाम कल्याणचंद (मेहता कालू जी) था. आपकी बहन का नाम नानकी था. गुरु जी का जन्म स्थान होने के कारण तलवंडी का नाम आगे चलकर ननकाना पड़ गया.
प्रखर बुद्धि सम्पन्न गुरु नानक बचपन से ही सांसारिक भोग विलास से दूर रही. पढ़ने लिखने में उन्होंने रूचि नहीं ली. बहुत शीघ्र अर्थात ७-८ वर्ष की आयु में ही आपने पाठशाला का त्याग कर दिया क्योंकि आपके भगवतप्राप्ति सम्बन्धी प्रश्नो के सामने सभी शिक्षक पराजित हो गए थे. और वे उनको पूरे आदर के साथ घर छोड़ने आए. बचपन से ही विलक्षण पुरुष के रूप में गुरु नानक देव की कीर्ति फैलने लग गई थी.
इसके उपरान्त गुरु नानक अपना सम्पूर्ण समय आध्यात्म के चिंतन-मनन में लगाने लगे. उनका बाल्यकाल कई तरह की चमत्कारिक घटनाओं से भरा हुआ है जिनको देख कर आसपास के गाँव के लोग उन्हें दिव्य चमत्कारी पुरुष मानने लगे थे. गुरु नानक की बहन नानकी और उनके गाँव के शासक राय बुलार बचपन से ही गुरु नानक के अंतरतम में उपस्थित परमेश्वर के अंश को पहचान कर उनके भक्त बन गए थे.
(क्रमशः)
(रजनी साहनी)