प्रकृति की गोद में बसा भूटान एक ऐसा देश है जो खुशहाली पर जोर देता है। जहाँ पूरी दुनिया का जोर जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद पर होता है वहीँ भूटान अपने नागरिकों का जीवन स्तर जीएनएच यानी सकल राष्ट्रीय ख़ुशी से नापता है।
यह एक बड़ा फर्क है जो भूटान को पूरी दुनिया से अलग करता है। भूटान की हवाओं में ऑक्सीजन की मात्रा इतनी अधिक है कि आप पूरे समय फ्रेश महसूस करते हैं, यहाँ की दीवारों और सडक़ों पर आपको इश्तेहार नहीं मिलेंगें और शहरों में ना तो भव्य शॉपिंग मॉल है और ना ही ट्रैफिक लाइट की जरूरत पड़ती है।
इस मुल्क में सैनिकों से ज्यादा भिक्षु है। कोई भी व्यक्ति हड़बड़ी में नहीं दिखाई पड़ता है। भौतिकवादी दुनिया से बेफिक्र यह मुल्क आत्मसंतोष और अंदरूनी ख़ुशी को ज्यादा तरजीह देता है।
भारत और तिब्बत के बीच घिरे इस छोटे से देश की आबादी लगभग पौने 8 लाख है जिसमें ज्यादातर लोग बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं, भूटान में लोकतंत्र और संवैधानिक राजशाही है। राजशाही यहाँ 1907 से है लेकिन 2008 में यहाँ के राजा ने खुद से आगे बढ़ कर लोकतंत्र की घोषणा की। शायद यही वजह है कि भूटानी अपने राजा को बहुत सम्मान की दृष्टि देखते हैं।
भूटान के ‘पारो’ और ‘थिम्फू’ दो प्रमुख शहर हैं,जिसमें थिम्फू भूटान की राजधानी है, वही पारो तो जैसे सपनों का शहर है,शांत और ठहरा हुआ जो सुकून देता है। पारो घाटी से दिखने वाली सुंदरता आपको मदहोश कर देती है,यह एक ऐसा शहर है जहाँ की सादगी के वैभव में आप खो सकते हैं। पारो में भूटान का इकलौता हवाई अड्डा भी है । पारो में घुसते ही ऐसा महसूस होता है जैसे आप समय में कहीं पीछे चले गये हों, यह जाकर किसी प्राचीन नगर का अहसास होता है ।
पूरे शहर के साथ एक नदी भी बहती है बिलकुल साफ, पारदर्शी और शांत। पारो शहर की खासियत यहाँ की हरियाली पहाड़ी घाटियाँ है। यह एक बेफिक्र शहर है जहाँ बहुमंजिला मकान नहीं है और शहर में ही खेती भी होती है। पारो अपने रहस्यमयी टाइगर नेस्ट के लिए भी मशहूर है, 3120 मीटर की ऊंचाईपर बना टाइगर नेस्ट भूटान के सबसे पवित्र बौद्ध मठों में से एक है पारो शहर से मठ की चढाई शुरू करने की जगह करीब 12 किलोमीटर दूर है यह मठ पारो से उत्तर दिशा में 12 किमी की दूर ताकसंग नामक स्थान पर है, यहाँ से टाइगर नेस्ट तक जाने के लिए पैदल चलना पड़ता है आधे रास्ते तक घोड़े का भी इन्तेजाम हैं । लम्बी चढ़ाई के बाद टाइगर नेस्ट तक पहुचने पर आपको अनोखी शांति और रोमांचक अहसास होता है मठ पर पहुंच कर अनोखी का एहसास होता है।
भूटानी अपनी संस्कृति व पर्यावरण को लेकर बहुत संवेदनशील हैं, यह शायद दुनिया का अकेला कार्बन यहाँ की नेगेटिव देश है जहाँ की 70 प्रतिशत जमीन पेड़-पौधों से ढकी है। इनके नीतियों और आदतों दोनों में पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया जाता है।
भूटान के संविधान के अनुसार यहाँ के जमीन का 60 प्रतिशत हिस्सा जंगलों और पेड़ पौधों के लिए संरक्षित रखना अनिवार्य है, यहाँ प्राकृतिक सौंदर्य व संपदा के बदले आर्थिक लाभों को महत्व नहीं दिया जाता है। साल 1999 से यहाँ प्लास्टिक की थैलियां भी प्रतिबंधित हैं। भूटानवासी भी पर्यावरण को लेकर बहुत सचेत होते हैं। पर्यावरण से प्रेम उन्हें बचपन से ही सिखाया जाता है।
भूटान में बहुत कम संख्या में निजी वाहन है, ज्यादातर लोग पब्लिक ट्रांसर्पोट का उपयोग करते हैं। भूटान में चारो तरफ हरियाली ही हरियाली है इसके बावजूद भी लोग अपने घरों में अलग से बगीचा लगाते हैं और उसमें तरह तरह के रंगबिरंगी फूल उगाते हैं। भूटानी लोग प्रकृति का बहुत सम्मान करते हैं। उनका प्रकृति के प्रति प्रेम महसूस किया जा सकता है। वे इन पहाड़ों से दिल से जुड़े हुए हैं।
अपने प्रकृति के प्रति प्रेम और संरक्षण को लेकर गर्व जताते हुए कोई भी आम भूटानी आपको यह बताते हुए मिल जाएगा कि ‘कैसे वे अपने देश के ज्यादातर भू-भाग में पेड़–पौधों के होने के बावजूद इनका दोहन करने के बदले लगातार नये पेड़ लगा रहे हैं और जब उनके राजा के घर बच्चे का जन्म हुआ तो पूरे देश ने 2 करोड़ पेड़ लगाये।’ भूटानी प्रकृति से जितना लेते हैं उससे कई गुना ज्यादा उसे लौटाने की कोशिश करते हैं और यही कारण है कि उनका देश काबर्न उत्सर्जन से पूरी तरह से मुक्त है जो दुनिया के दूसरे मुल्कों के लिए एक मिसाल है।
देश में संसाधन कम होने के बावजूद सरकार लोगों की बुनियादी जरूरतों के प्रति संवेदनशील है और शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं पर विशेष ध्यान देती है। यहाँ कानून व्यवस्था भी काफी अच्छी है और अपराध दर व भ्रष्टाचार भी बहुत कम है। कानून का कड़ाई से पालन भी किया जाता है।
भूटान के लोग बहुत मिलनसार और अपनत्व से भरे हुए होते हैं। वे मददगार भी होते हैं। लेकिन इनका भारतीयों के प्रति एक अलग ही अपनापन और लगाव देखने को मिलता है। वे भारतीयों को अपने से अलग नही मानते हैं। इसका प्रमुख कारण भूटान का भारत के साथ पुराना सांस्कृतिक रिश्ता है। भूटान में ज्यादातर जरूरत के सामान भी भारत से आते हैं।
(साभार)