तुम्हें छिपाने वाले नभ के
झीने बादल जाल से
मुझे शिकायत है तो केवल
पावस के अंधियार से..
गगन कि जिसमें रूप चांदनी
चंदा काजर आँजता
झुकी पलक पर बूंद शबनमी
मोती तारा साजता
छलक न जाए पलक रेशमी
भीगी पीड़ा भार से
मुझे शिकायत है तो केवल
सुधियों की मनुहार से..
याद कि जैसे नदी किनारे
भटकी लहर पुकारती
अन-आगत पाहुन के पथ पर
दिपी हुई सी आरती
बरस न जाए घटा साँवरी
मौसम की अनुहार से
मुझे शिकायत है तो केवल
चंचल मलय बयार से..
(प्रभा त्रिपाठी)