मैं साहिल पर लिखी इबादत नहीं
जो लहरों से मिट जाती !
बारिश की बरसती बूंद नहीं मैं
जो बरस कर थम जाती !
मैं ख़्वाब नहीं जो कभी
देखी और भुला दी जाती !
मैं वो शमा नहीं जो कभी
फूँकी और बुझा दी जाती !
मैं हवा का झोंका नहीं
जो आती और गुज़र जाती !
मैं चाँद भी नहीं जो
रात के बाद ढल जाती !
मैं तो फकत एक एहसास हूँ
रूह बन कर तेरे जिस्म में हूँ !
क्यूँ कि मैं तो मुहब्बत हूँ
जो रूह रूह से करे !
हर बंधन हर रस्म से परे
मुहब्बत ही है जो रब को अपना करे !
मुहब्बत ही है दुनिया में जो
इंसान को भी भगवान करे !!
(डॉ. मीनल शर्मा)