जल के बिना न तो मनुष्य का जीवन सम्भव है और न ही वह किसी कार्य को संचालित कर सकता है । जल मानव जीवन की मूल आवश्यकता है। जल ही जीवन है. जल के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है. हम सब जानते हैं हमारे लिए जल कितना महत्वपूर्ण है. लेकिन यह सब बातें हम तब भूल जाते हैं जब अपने नल के सामने मुंह धोते हुए पानी को बर्बाद करते रहते हैं और तब जब हम कई लीटर मूल्यवान पानी अपनी कीमती कार को धोने में बर्बाद कर देते हैं.
किताबी दुनिया और किताबी ज्ञान को हममें से बहुत कम ही असल जिंदगी में उतार पाते हैं और इसी का नतीजा है कि आज भारत और विश्व के सामने पीने के पानी की समस्या उत्पन्न हो गई है. यूं तो धरातल का 70% से अधिक भाग जल से भरा है, किन्तु इनमें से अधिकतर हिस्से का पानी खारा अथवा पीने योग्य नहीं है।
धरातल पर तीन चौथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी एक सीमित मात्रा में ही है. उस सीमित मात्रा के पानी का इंसान ने बेतरतीब दोहन किया है. नदी, तालाबों और झरनों को पहले ही हम कैमिकल की भेंट चढ़ा चुके हैं, जो बचा खुचा है उसे अब हम अपनी अमानत समझ कर बेतहाशा खर्च कर रहे हैं. और लोगों को पानी खर्च करने में कोई हर्ज भी नहीं क्योंकि अगर घर के नल में पानी नहीं आता तो वह पानी का टैंकर मंगवा लेते हैं.
सीधी सी बात है पानी की कीमत को आज भी आदमी नहीं समझ पाया है क्यूंकि सबको लगता है आज अगर यह नहीं है तो कल तो मिल ही जाएगा लेकिन सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। वैज्ञानिक शोध, भू वैज्ञानिक, जल विशेषझों की राय और उनके शोध काफी डराने वाले और हकीकत से रु-ब-रु कराने वाले हैं।
अगर हम भारत की बात करें तो देखेंगे कि एक तरफ दिल्ली, मुंबई जैसे महानगर हैं जहां पानी की किल्लत तो है पर फिर भी यहां पानी की समस्या विकराल रुप में नहीं है. यहां पानी के लिए जिंदगी दांव पर नहीं लगती पर देश के कुछ ऐसे राज्य भी हैं जहां आज तक जिंदगियां पानी की वजह से दम तोड़ती नजर आती हैं.
राजस्थान, जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में पानी आदमी की जान से भी ज्यादा कीमती है. पीने का पानी इन इलाकों में बड़ी कठिनाई से मिलता है. कई कई किलोमीटर चल कर इन प्रदेशों की महिलाएं पीने का पानी लाती हैं. इनकी जिंदगी का एक अहम समय पानी की जद्दोजहद में ही बीत जाता है.
पानी की इसी जंग को खत्म करने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 1992 के अपने अधिवेशन में 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रुप में मनाने का निश्चय किया जिस पर सर्वप्रथम 1993 को पहली बार 22 मार्च के दिन पूरे विश्व में जल दिवस के मौके पर जल के संरक्षण और रखरखाव पर जागरुकता फैलाने का कार्य किया गया.
इस वर्ष के विश्व जल दिवस का विषय शहरों के लिए पानी शहरीकरण की प्रमुख भावी चुनौतियों को उजागर करता है. शहरीकरण के कारण अधिक सक्षम जल प्रबंधन और बढ़िया पेय जल और सैनिटेशन की जरूरत पड़ती है. लेकिन शहरों के सामने यह एक गंभीर समस्या है. शहरों की बढ़ती आबादी और पानी की बढ़ती मांग से कई दिक्कतें खड़ी हो गई हैं. जिन लोगों के पास पानी की समस्या से निपटने के लिए कारगर उपाय नहीं है उनके लिए मुसीबतें हर समय मुंह खोले खड़ी हैं. कभी बीमारियों का संकट तो कभी जल का अकाल, एक शहरी को आने वाले समय में ऐसी तमाम समस्याओं से रुबरु होना पड़ सकता है।
ऐसा नहीं है कि पानी की समस्या से हम जीत नहीं सकते. अगर सही ढ़ंग से पानी का सरंक्षण किया जाए और जितना हो सके पानी को बर्बाद करने से रोका जाए तो इस समस्या का समाधान बेहद आसान हो जाएगा. लेकिन इसके लिए जरुरत है जागरुकता की. एक ऐसी जागरुकता की जिसमें बच्चे से लेकर बूढ़े भी पानी को बचाना अपना धर्म समझें. आप पानी को बचाने के लिए कौन से कदम उठाते हैं? आपका एक छोटा सा प्रयास कईयों की प्यास बुझा सकता है क्योंकि जल है तो कल है और जल है तो जीवन है।
(अजय कुमार)