‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ ये कहावत पश्चिम बंगाल राज्य सरकार पर अभी बिल्कुल सटीक बैठती है| हाल-फिलहाल ही बंगाल में हुआ चुनाव मुख्य रूप से चर्चा का विषय रहा| चुनाव के पश्चात बंगाल में जो हिंसा और लूटपाट का वातावरण गर्माया उससे सभी वाकिफ हैं| इन राजनितिक हमलों की वजह से कई लोगों की जानें गईं और जाने कितने लोग घर से बेघर हो गये|
आज की खबर ये है कि कोलकाता हाईकोर्ट ने चुनाव के उपरान्त हुई हिंसा की जाँच के आदेश एनएचआरसी को दिए है|
ममता सरकार ने इस आदेश दो दिन बाद ही बौखलाकर जाँच-पड़ताल को रोकने के लिये याचिका दायर की है|ममता सरकार इस फैसले से काफी असहज लग रही है|
चूँकि चुनाव के बाद हुई हिंसा की याचिकाएँ कोर्ट में दर्ज हैं| इसलिये न्यायालय ने हिंसा की याचिकाओं के आधार पर पाँच सदस्यीय जजों की बेंच को आदेश जारी किये हैं, जो मानवाधिकार उल्लंघनों की जाँच के लिये एक समिति का गठन करने के फरमान जारी करेगी|जिनमें मुख्य कार्यवाहक न्यायधीश राजेश बिंदल,न्यायमूर्ति आईपी मुखर्जी, न्यायमूर्ति हरीश टंडन, न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति सुब्रत तालुकदार शामिल हैं|
सरकार ने ये अनुरोध किया है कि उच्च न्यायालय ने सरकार और उनके अधिकारियों के संदर्भ में जो टिप्पणी की है उसे वापस लिया जाना चाहिये|
सरकार ने ये भी दावा किया है कि उनको अवसर दिये बगैर (राज्य विधि सेवा प्राधिकरण (एसएलएसए) सदस्य सचिव की रिपोर्ट के संबंध में आदेश जारी कर दिये गये हैं, इसलिये उन्हें अगली सुनवाई होने तक एसएलएसए सदस्य सचिव की रिपोर्ट पर ज़रूरी कार्यवाही और चुनाव के बाद हुई हिंसा,संपति और कार्यालय में लूटपाट की गतिविधियों पर उनके द्वारा उठाये गये कदम का ब्यौरा और सफाई देने की सहूलियत दी जाये| सरकार ने ये भी कहा है कि उनकी याचिका के मामले की पूरी तरह से पड़ताल होने तक इस आदेश पर रोक लगाई जाये|