Nepal के नव निर्मित प्रधानमंत्री Sher Bahadur Deuba संसद में विश्वास मत जीत गये हैं. देउबा के प्रधानमंत्री बनने और विश्वास मत जीतने से चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी की नेपाल में भारत विरोधी आशाओं पर पानी फिरता नज़र आ रहा है.
नेपाल सहित समूचे भारत के लोगों में खुशी की लहर फैली. देउबा को सदन में 165 वोट मिले ,वहीं विरोधी वोटों की संख्या 83 रही. कुल मिलाकर 249 में सिर्फ 1 वोट न्यूट्रल रहा. ओली सरकार अंधकार के आत्मघाती पथ पर चल रही थी जिसकी बटेर चीन के कुटिल और लालची हाथों मे थी.
अंत हुआ राजनीतिक संकट
देउबा के प्रधानमंत्री बनते ही नेपाल पर गहराये राजनीतिक संकट का अंत हो गया. नेपाल की संवैधानिक समस्या खत्म हो गई. शेर बहादुर देउबा का रूख भारत सरकार के प्रति सकारात्मक और उदार ही रहा है, वे भारतीय संस्कृति के बड़े समर्थक रहे हैं.
भारत-मित्र है नेपाली कांग्रेस पार्टी
ध्यान देने वाला तथ्य ये है कि देउबा के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद 275 सदस्यीय निचले सदन में 4 सीटें खाली चल रही थीं. ऐसे में सदन में बहुमत साबित करने के लिए शेर बहादुर देउबा को केवल 136 वोटों की ही आवश्यकता थी. सदन में देउबा की नेपाली कांग्रेस पार्टी के पास 61 सीटें थी.
असंतुष्टों से भी मिला समर्थन
देउबा ने अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिये विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बातचीत की और सीपीएन-यूएमएल के असंतुष्ट नेता माधव कुमार नेपाल से भी समर्थन हासिल करने के लिए वे बुधवार को उनके कोटेश्वर स्थित निवास स्थान पर गये थे.
यूएमएल के 23 सांसद आये साथ
मीडिया सूत्रों के अनुसार पहले से ही ये अनुमान भी लगाया जा रहा था कि यूएमएल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के कुछ असंतुष्ट नेता विश्वास मत के दौरान देउबा के पक्ष में वोट कर सकते हैं. ज़ाहिर है ऐसे में प्रधानमंत्री देउबा की कुर्सी के लिए यूएमएल का समर्थन महत्वपूर्ण व स्वाभाविक था. यूएमएल के 23 सांसदों ने माधव कुमार नेपाल सहित कुछ महीने पहले राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के समक्ष शेरबहादुर देउबा का समर्थन किया था.