दुनिया भर में यूरोप की ग्रेटा थन्बर्ग के नाम के ढोल बजाये जाते हैं लेकिन क्या कभी किसी ने बबिता राजपूत का नाम किसी मीडिया में सुना है? इसकी वजह है असली और नकली का फर्क. कुछ लोग प्रायोजित किये जाते हैं और फिर उनके माध्यम से प्रायोजित काम किये जाते हैं. वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग असली होते हैं मगर उन पर किसी का ध्यान नहीं जाता क्योंकि वे मीडिया के कैमरों के सामने नहीं होते बल्कि वास्तविकता के कठोर धरातल पर खड़े हो कर काम में लगे होते हैं.
अंगरोठा गाँव की है बबिता
ग्रेटा थन्बर्ग अगर 18 साल की है तो भारत की बबिता राजपूत 19 वर्ष की है जो उम्र में भी अधिक है और कर्म में भी अधिक. बबिता राजपूत मध्यप्रदेश के अंगरोठा गाँव की रहने वाली जिसे अंगरोठा में सभी लोग जानते हैं और मध्यप्रदेश में भी कुछ लोग जानते हैं पर भारत में बहुत कम लोग हैं जिन्होंने ये नाम सुना है और इस नाम से जुड़े काम को जाना है.
खोद डाली थी खाई
बबिता है असली पर्यावरण कार्यकर्त्री जो टीवी पर भाषण नहीं देती, भारत जैसे सज्जन देश के विरुद्ध बयान नहीं देती बल्कि मैदान में उतर कर काम करती है. भारत की इस बेटी ने 2018 में अपने गाँव की 200 महिलाओं को एकत्र किया और उनको अपने मिशन का महत्व बता कर अपने साथ जोड़ा. फिर बबिता और उसकी सहेलियों ने मिलकर एक खाई खोद डाली ताकि पहाड़ो से बहता बारिश का पानी उसमे एकत्र हो सके.
भारत की जल-बाला है बबिता
बबिता के समूह ने पुराने मृत तालाब और सूखी नदी को जीवित किया और सूखा पीड़ित गाँव की वर्षों पुरानी जल समस्या का निवारण कर के उसका एक बेहतर समाधान सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया. और इस तरह न जाने कितने गाँवों और लोगों को प्रेरित किया कि सरकार का मुँह देखने की बजाए अपनी समस्या का स्वयं भी समूह बना कर समाधान किया जा सकता है. आज बबिता के 1400 लोगों की आबादी वाला गाँव खुशहाल है. यहां गाँव की नहरों में भरपूर पानी है और यहां के किसान सरलतापूर्वक सिंचाई कर पा रहे हैं.