Bihar Election 2025:पहले चरण की बंपर वोटिंग ने बढ़ाई सियासी हलचल — किसके हक में गया जनता का मूड?

Bihar Election 2025 के पहले चरण में हुई रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग ने सियासी हलचल बढ़ा दी है।
चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, सभी अब इस बात का विश्लेषण कर रहे हैं कि जनता का यह जोश आखिर किस दिशा में इशारा कर रहा है।
राजनीतिक गलियारों में सबसे बड़ा सवाल यही है —
क्या यह बंपर वोटिंग “जन बदलाव” की लहर का संकेत है?
और क्या यह प्रशांत किशोर (PK) के ‘जन सुराज’ अभियान को नई ताकत दे सकती है?
सवाल 1: आखिर इतनी बंपर वोटिंग क्यों हुई?
बिहार के कई जिलों में इस बार मतदान प्रतिशत ने पिछले चुनावों के आंकड़ों को पीछे छोड़ दिया।
जहां ग्रामीण इलाकों में सुबह से ही लंबी कतारें दिखीं, वहीं शहरी मतदाताओं ने भी इस बार बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार इसके पीछे तीन बड़े कारण हैं:
- स्थानीय मुद्दे – बेरोज़गारी, शिक्षा और पलायन अब चुनावी बहस के केंद्र में हैं।
- नए चेहरों की मौजूदगी – पीके जैसे नए विकल्पों ने वोटर्स को ‘वैकल्पिक राजनीति’ की उम्मीद दी।
- युवा वोटर्स की भागीदारी – 18-25 वर्ष आयु वर्ग में इस बार रिकॉर्ड पंजीकरण हुआ है।
सवाल 2: इस वोटिंग का फायदा किसे होगा?
यही वह बिंदु है जो बिहार के चुनावी समीकरण को पेचीदा बनाता है।
ऊंचा मतदान आमतौर पर बदलाव की लहर से जोड़ा जाता है, लेकिन यह हमेशा सही नहीं होता।
- सत्ता पक्ष (जेडीयू-भाजपा गठबंधन) के लिए यह एक परीक्षा है। अगर यह बंपर वोटिंग एंटी-इंकम्बेंसी के कारण हुई, तो नुकसान हो सकता है।
- विपक्षी दलों (राजद-कांग्रेस) के लिए यह मौका है, क्योंकि वे लंबे समय से बदलाव के नारे पर चल रहे हैं।
- प्रशांत किशोर के लिए यह अवसर भी है और चुनौती भी — क्या जनता ने उन्हें ‘तीसरा विकल्प’ मान लिया है?
सवाल 3: क्या बिहार नई राजनीति की ओर बढ़ रहा है?
प्रशांत किशोर का “जन सुराज” अभियान पिछले दो सालों से गाँव-गाँव घूमकर जनता की नब्ज़ टटोल रहा है।
उनका दावा है कि बिहार को अब नई सोच, नई व्यवस्था और जनता-केंद्रित राजनीति की ज़रूरत है।
बंपर वोटिंग के बाद यह चर्चा तेज़ है कि क्या बिहार की जनता ने वास्तव में “नई राजनीति” को अपनाना शुरू कर दिया है?
अगर ऐसा है, तो पीके भविष्य में केवल रणनीतिकार नहीं, बल्कि किंगमेकर या खुद ‘किंग’ बन सकते हैं।
सवाल 4: विपक्ष और सत्ता की रणनीति कैसे बदलेगी?
पहले चरण की वोटिंग के बाद दोनों खेमों ने अपने कैंपेन टोन में बदलाव लाना शुरू कर दिया है।
- सत्ता पक्ष अब “विकास बनाम प्रयोग” के एजेंडे पर लौट आया है।
- विपक्ष “बदलाव बनाम निराशा” की लाइन पर खेल रहा है।
- जबकि प्रशांत किशोर “जनता बनाम सिस्टम” की राजनीति पर कायम हैं।
अगले चरणों में सोशल मीडिया, बूथ प्रबंधन और जमीनी जनसंपर्क पर फोकस बढ़ेगा।
हर दल अब डेटा-ड्रिवन रणनीति अपना रहा है — ठीक उसी अंदाज़ में जिसे पीके ने देशभर में लोकप्रिय बनाया था।
सवाल 5: आगे का रास्ता क्या संकेत देता है?
पहले चरण की बंपर वोटिंग के बाद राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब बिहार में त्रिकोणीय मुकाबला लगभग तय है।
- जनता के मूड में साइलेंट वेव दिख रही है,
- युवा वर्ग अपने वोट को “बदलाव का हथियार” मान रहा है,
- और महिला वोटर्स का मतदान प्रतिशत इस बार सबसे ऊँचा रहा।
अगर यह रुझान अगले चरणों में भी जारी रहता है, तो बिहार की सियासत में बड़ा उलटफेर संभव है।
डेटा क्या कहता है?
| चरण | मतदान प्रतिशत | पिछला चुनाव (%) | अंतर |
|---|---|---|---|
| पहला चरण | 63.5% | 58.2% | +5.3% |
| महिला वोटिंग | 65% | 59% | +6% |
| युवा वोटर (18-25) | 18% कुल वोटर बेस | 13% | +5% |

5 फीसदी अधिक या कम मतदान से हुआ बड़ा खेल
1962 विधानसभा में हुए 44.47% फीसदी मतदान की तुलना में 1967 के चुनाव में 51.51 फीसदी मतदान हुआ. करीब 7 फीसदी ज्यादा मतदान और बिहार में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी, यानी सत्ता परिवर्तन हुआ. 1985 की तुलना में 1990 में 62 फीसदी ज्यादा मतदान हुआ जो पिछले चुनाव से 5.8 फीसदी ज्यादा था और बिहार में सत्ता बदल गई. सिर्फ 2005 में ऐसा हुआ जब 2000 में हुए 62.6 फीसदी की तुलना में 46.5 मतदान हुआ जो पिछले चुनाव से 16.1 फीसदी कम था, लेकिन सत्ता बदल गई. लालू हारे और नीतीश जीते.
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