आज गणेश चतुर्थी है . हिंदू धर्म में अनगिनत त्यौहार मनाए जाते हैं और हर त्यौहार का अपना रंग-ढंग और महत्व है. हर त्यौहार के पीछे कुछ न कुछ पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जिनका अपना विशेष महत्व है.
सुख-समृद्धि के प्रतीक गणेश जी
सर्वप्रथम हम ये जानते हैं कि गणेश चतुर्थी श्री गणपति के जन्मदिवस पर मनाई जाती है. गणेश जी रिद्धि-सिद्धि के देवता के रूप में पूजे जाते है. ये शुभ-लाभ, रिद्धि-सिद्धि, सुख-समृद्धि,ज्ञान व बुद्धि तथा मंगल-कार्यों के प्रतीक माने जाते हैं. किसी भी कार्य का शुभारंभ करने से पूर्व गणेश-वंदन अवश्य किया जाता है. इनको सुमिरे बिना कोई कार्य सार्थक नहीं हो सकता ऐसा माना जाता है यानी किसी भी कार्य के सफलता के चरम पर पहुँचने की गारंटी श्री गणेश जी की ही है. बड़े से बड़े धार्मिक अनुष्ठान, विवाह, जन्म,उत्सव आदि में सर्वप्रथम इन्हें ही पूजा जाता है. तत्पश्चात अन्य देवी-देवताओं की आराधना की जाती है. ये पाँच प्रमुख देयताओं की सूची में आते हैं और सभी देवी-देवताओं में सर्वप्रथम इनका ही पूजन किया जाता है.
गणेश जी का जन्म और उनके नाम की महिमा
अब प्रश्न ये उठता है कि गणेश जी है कौन? भगवान शिव-पार्वती के छोटे पुत्र हैं गणेश जी. इनके बड़े भाई श्री कार्तिकेय जी हैं. गणेश जी के जन्मोत्पत्ति के पीछे भी एक कथा प्रचलित है कि उनका जन्म माता पार्वती का शरीर के मैल से हुआ था जिसे वो स्नान करते जाते समय द्वार पर सुरक्षा हेतु छोड़ गई थी. कुछ देर बाद भगवान शिव अंदर जाने लगते हैं तो पार्वती जी की आज्ञानुसार वे शिव को रोकते हैं. महादेव के आग्रह को बार-बार ठुकराने पर वे उस बालक का सर धड़ से अलग कर देते हैं. यह देख पार्वती माता रोने लगती है और भगवान शिव को उसे पुन: जीवित करने का आग्रह करती है.
शिव अपने गणचरों को धरती लोक पर किसी ऐसे बच्चे का सर काट कर लाने की आज्ञा देते हैं जिसकी माँ उसकी तरफ पीठ करके सोई हुई हो. एक हथिनी अपने बालक बच्चे की तरफ पीठ करके सोई हुई होती है वे लोग उस बालक हाथी का सर काटकर ले आते हैं महादेव के सामने और भगवान शिव उस मृत बालक के धड़ से उस हथिनी के बच्चे का सर जोड़ देते हैं और नाम देते हैं “गणपति”. साथ ही यह आशीर्वाद भी देते है कि किसी भी मंगल कार्य में सर्वप्रथम गणपति की ही पूजा की जाएगी. यही कारण है कि गणेश जी की पूजा सर्वप्रथम किये बिना किसी के काम नही बनते.
गणेश चतुर्थी कब मनाई जाती है?
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है. यह चतुर्थी अगस्त से सितंबर के मध्य आती है. हिंदुओं द्वारा मनाये जाने वाले विशिष्ट त्यौहारों में से एक है गणेश चतुर्थी. वैसे तो ये पूरे भारत वर्ष में मनाई जाती है परन्तु महाराष्ट्र में यह पर्व बड़े ही उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन लोग भगवान गणेश जी की मूर्ति अपने घरों में स्थापित करते हैं. पूरे 10 दिनों तक विनायक गणेश जी की पूजा पूरे विधि-विधान से की जाती है फिर 11 वें दिन खूब धूम-धाम से गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है.
इन ग्यारह दिनों की पूजा के दौरान गणेश जी को विभिन्न स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग अर्पण किया जाता है, तथा पवित्र मंत्रोच्चार से उनका पूजन-अर्चन किया जाता है. सभी भक्तगण श्री गणेश जी से सुख-समृद्धि और मंगलकामना हेतु प्रार्थना करते है और सफलता का आशीर्वाद माँगते हैं
गणेश-पूजन का शुभ-मुहुर्त
इस वर्ष गणेश चतुर्थी (2021)10 सितंबर ,शुक्रवार को मनाई जायेगी यानी इस दिन से गणोशोत्सव प्रारंभ होगा. लोग पूर्ण श्रद्धा और आस्था से इनकी अर्चना करते हैं. उनका ये विश्वास है कि उन्हें जीवन में प्रसन्नता, ज्ञान, धन,लंबी आयु व सफलता प्राप्त होगी. तभी गणेश जी को विघ्नहर्ता, सिद्धि विनायक भी कहा जाता है.
गणेश जी की मूर्ति घर को शुभ मुहूर्त में ही लाकर विराजमान कीजिए. मूर्ति का चयन करने के समय ये अवश्य ध्यान में रखें कि गणेश जी की मूर्ति की सूंड़ का मुँह किस ओर है दाईं या बाईं.
यह बहुत आवश्यक है क्योंकि जिस मूर्ति में सूड़ का अग्रभाव बाई ओर होता है उसे दक्षिणमुखी कहते है जो यमलोक की ओर ले जाती है यानी सूर्य नाड़ी. इस प्रकार की सूंड़ वाली मूर्ति की पूजा का विशेष विधान होता है जो न होने पर अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है और गणेश जी रूष्ट भी हो सकते हैं.
बाई ओर के अग्रभाव वाली मूर्ति उत्तरमुखी होने के साथ चंद नाड़ी होती है इसे “वाममुखी” भी कहते हैं क्योंकि सूंड का अग्रभाग बाई ओर होता है. ऐसी मूर्ति पूजा के लिये सर्वश्रेष्ठ है तथा इसमें पूजा की कोई विशेष पद्धति का अनुसरण भी आवश्यक नही. इस प्रकार की गणेश-मूर्ति के पूजन से घर में सुख-समृद्धि आती है और व्यापार में लाभ और बढ़ोत्तरी होती है.
इस वर्ष यानी 22 August 2020 को गणेश जी की मूर्ति घर पर निम्नलिखित शुभ मुहूर्त में ही लायें
*लाभ का समय—– दोपहर के 2 बजकर 17 मिनट (PM) से 3 बजकर 52 मिनट(PM) तक रहेगा.
*शुभ का समय—-सवेरे 7 बजकर 58 से सवेरे 9 बजकर 30 तक.
*संध्याकाल मुहूर्त—-06:54 PM to 08:20 PM
गणेश जी की मूर्ति स्थापित करने के समय इस प्रकार हैं…10 September 2021 को निम्नलिखित समय में आप गणपति की मूर्ति को विराजमान कर सकते हैं जो इस प्रकार से है…..
अमृतकाल—-03:53 PM से 05:17 PM तक
शुभकाल—-….09:32 AM से 11:06 AM तक
11:25 AM से दोपहर 01:54 PM के बीच गणेश पूजन का समय सर्वोत्तम है. यह मुहूर्त और घड़ी सर्वश्रेष्ठ है गणेश-पूजन के लिए.
पूजन-विधि
गणेश-पूजा के लिये सर्वप्रथम नहा-धोकर लाल कपडे धारण करने चाहिए. वैसे भी पूजन या धार्मिक अनुष्ठान में लाल-पीले रंग के वस्त्र ही शुभ होते हैं. श्री गणेश जी की मूर्ति का मुख उत्तर या पूर्व की दिशा में रखा जाना चाहिए.
तत्पश्चात पंचामृत(दूध,दही,घी,शहद,केसर) से गणेश जी का अभिषेक करते हुए रोली,चावल ,कलावा और भरपूर सिंदूर चढ़ाया जाता है. पंचामृत के अभिषेक पूजन के बाद गंगा जल से भी उनका अभिषेक करना चाहिए.
सुपारी,फल,फूल और दूब चढ़ाना चाहिये. गणेशजी की मनपसंद मिठाई मोदक है तो उसी का भोग लगाना चाहिए परन्तु गणेश जी को तुलसी-पत्र से भोग नही लगता है. इसके पीछे भी भी एक पौराणिक कथा है कि धर्मात्मजा की नवयौवना पुत्री तुलसी ने विवाह की इच्छा से शुरू की गई तीर्थयात्रा के दौरान गंगा किनारे गणेश जी को तप करते देखा. वे गणेश जी के रूप पर मोहित हो गई. उनसेे विवाह की इच्छा जाहिर करते समय गणेश जी की तपस्या में विध्न पड़ा और उन्होंने विवाह प्रस्ताव ठुकरा कर तुलसी कोश्राप दिया कि उसका विवाह शंखचूर नामक राक्षस से होगा. तुलसीजी को अपनी भूल का एहसास हुआ और क्षमा माँगी तो गणेश जी ने कहा कि भविष्य में वह विष्णु और कृष्ण की प्रिय रहेगी. इसी कारण गणेश जी को तुलसीपत्र नही चढ़ता.
अब उनके बारह नामों को डरते मंत्रोउच्चारण करना चाहिए जो इस प्रकार हैं सिद्ध सुमुख,एकदंत,कपिल, गजकर्ण,लंबोदर,विकट,विघ्नविनाशक,विनायक,धूम्रकेतु,गणाध्यक्ष,भालचन्द्र ,गजानन.
इसी प्रकार इस मुख्य मंत्र का उच्चारण भी करना चाहिए.
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटी समप्रभ .
निर्विध्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा …
इसके चारों अनुष्ठान भलिभाँति करने चाहिए.
प्राणप्रतिष्ठा (मूर्ति स्थापना के समय), षडोपचार( गणेश जी को षोडश रूप में श्रद्धा अर्पण करना), उत्तरपूजा (इस पूजा के बाद मूर्ति की उचित स्थान पर स्थापना करना) , गणपति विसर्जन (11हरवें दिन मूर्ति को नदी या पोखर में विसर्जित करना)
गणेश पूजन की धूम विदेशों तक
गणेश चतुर्थी की धूम भारतवर्ष के इतर विदेशों में भी है. यह उत्सव इंडोनेशिया,कम्बोडिया,थाईलैंड,नेपाल, चीन और अफगानिस्तान में भी मनाया जाता है.
इस उत्सव को निजी से सार्वजनिक करने का श्रेय महापुरुष लोकमान्य तिलक जी को जाता है और मराठा के महाराजा वीर शिवाजी ने इसे सार्वजनिक उत्सव घोषित किया. इसीलिये ये भारतवर्ष के करीब-करीब हर राज्य में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है और विशेषकर महाराष्ट्र में यह समारोह बहुत ही उत्साह के साथ घर-घर में मनाया जाता है.