सर्वविदित है कि गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व आषाढ मास की पूर्णिमा के अवसर पर मनाया जाता है। यह पर्व आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दौरान आता है और इसी दिन भागवत के लेखक वेदव्यासजी का जन्म हुआ था। वेदव्यास जी को ही विश्व में प्रथम गुरु की उपाधि प्रदान की गई है, क्योंकि इन्होंने मानव जाति के कल्याण के लिए वेदों की रचना की थी।
इसके शाब्दिक अर्थ पर ध्यान दें तो ये है – गुरु+पूर्ण+मां अर्थात् कहा जा सकता है कि सर्वप्रथम मां ही पूर्ण गुरु है तत्पश्चात् गुरु ही पूर्ण मां है। दोनो ही शिक्षा दे कर बालक का जीवन संवार देते हैं। अतएव, दोनो ही हमारे लिये पूजनीय हैं और दोनो की महिमा जीवन के विकास हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गुरु का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है। कहते हैं गुरु के बिना ज्ञान नहीं! हमारी पहली गुरु हमारी मां होती है। वैसे देखा जाए तो जिंदगी के प्रत्येक कदम पर हम कुछ न कुछ सीखते हैं व गुरु कोई एक इंसान नहीं होता बल्कि जिंदगी में हमें जिनसे भी सीखने को मिलता है वो हमारा गुरु है। एक छोटी सी घटना भी हमें बहुत कुछ सिखा देती है। सही अर्थों में “गुरु” को परिभाषित करना संभव ही नहीं असंभव है!
गुरू वही है जिसमें निम्नलिखित विशेषतायें हों:
वो इंसान गुरु है जो ज़िंदगी को जीना सिखा दे!
वो जो हमें हमारी विशेषताओं का एहसास दिला दे!
वो जो हमें आईना दिखा दे!
वो जो हमारी कमियों को भी ऐसे बता दे कि स्वयं उन्हें सुधारने का दिल़ करे। हमें हर हाल में मुस्कुराना सिखा दे।
प्रत्येक मनुष्य की प्रथम गुरु “मां” होती है! मां कभी दु:खी न रहे! यही उस की गुरु दक्षिणा है!!
प्रत्येक जीव के प्रथम गुरु उस के माता-पिता होते हैं। माता-पिता जो सिखाते हैं वो सम्पूर्ण जीवन साथ रहता है। यही ज्ञान, मूल आधार है!!
जीवन में आए प्रत्येक छोटे-बड़े व्यक्ति जिनसे हमें कुछ न कुछ सीखने को मिला उन्हें गुरु समझकर हमारा सादर नमन।
देखा जाये तो स्वयं जीवन को भी गुरु पूर्णिमा की बधाई दी जा सकती है क्योंकि जीवन ने भी हमें बहुत कुछ सिखाया है और हर दिन कुछ न कुछ सिखा रहा है।
गुरुर्बह्मा: गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात् परम् ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:!!
“गुरु पूर्णिमा” के पावन पर्व की सभी को मंगलमयी शुभकामनाएं!
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