नवरात्रि के समय मां जगदंबा नित नये रूप धर कर हमारे घर आती हैं. मातारानी के प्रथम रूप को शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। दूसरा नाम ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवीं माता का नाम स्कंदमाता है। देवी के छठे रूप को कात्यायनी कहते हैं, सातवां कालरात्रि, आठवां महागौरी और नौवां स्वरूप सिद्धिदात्री के नाम से प्रसिद्ध है।
आज नवरात्रि का पंचम दिवस है और आज मां स्कंदमाता का शुभागमन है हमारे द्वार पर हमारे मंदिर में और हमारे जीवन में भी. यह हमारी श्रद्धा है हम मां को जहां भी आमन्त्रित करेंगे, मां वहीं आकर रहेंगी. ह्दय में भी, घर में भी और हमारे जीवन में भी.
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंद माता यशस्विनी॥
आज नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता के शुभागमन पर हम उनकी पूजा अर्चना करते हैं. मां के बारे में कहा जाता है कि स्कंदमाता भक्तों को सुख- मन की शांति प्रदान करने वाली है. देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान श्री स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता हैं.
इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके. यह अवस्था परम शांति व सुख का अनुभव कराती है.
माना जाता है कि माँ स्कंदमाता की उपासना से मन की सारी कुण्ठा जीवन-कलह और द्वेष भाव समाप्त हो जाता है. मृत्यु लोक में ही स्वर्ग की भांति परम शांति एवं सुख का अनुभव प्राप्त होता है. साधना के पूर्ण होने पर मोक्ष का मार्ग स्वत: ही खुल जाता है.