महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद ऋषि मुनि नही चाहते थे कि मानव उनके ज्ञान का दुरुपयोग एक दूसरे को नष्ट करने में प्रयोग करे।
ऋषि मुनियों ने धर्मराज युधिष्ठिर को सहसा प्रणाम किया और कुछ हिमालय चले गए तो कुछ ने स्वयं मोक्ष प्राप्त कर लिया।
मनुष्य ज्ञान का भूखा था ऋषि मुनि तो लौटने नही थे इसलिए कही की ईंट कही का रोड़ा नीति के तहत शास्त्रार्थ आरंभ किये गए।
शास्त्रार्थ में दो विद्वान आपस मे वाद विवाद करते थे और अंत मे एक मिश्रित निष्कर्ष राजा को देते थे। फिर राजा और उसका प्रधानमंत्री निर्णय लेते थे कि इस सिद्धांत को राज्य में लागू करना है या नही।
इन्ही सिद्धांतो में एक था देवताओ का चित्रण, महाभारत काल से पहले देवताओ के चित्र नही बनाये जाते थे सिर्फ शिवलिंग की पूजा होती थी।
मगर जब शास्त्रार्थों से देवताओ के चित्र बनाये गए तो गणेश जी का चित्र भी बना, गणेश जी के बारे शास्त्रों में बहुत लिखा गया था मगर चित्र बनना शेष था।
गणेश जी की बुद्धि सबसे बड़ी है उनसे अधिक बुद्धिमान संसार मे और कोई नही, इसलिए निर्णय हुआ कि उनका सिर बहुत बड़ा होगा।
संसार मे ऐसा कोई अच्छा या बुरा कार्य नही है जो मनुष्य की बुद्धि ना सुन सके अतः बड़े कान बनाये गए।
बुद्धि सदैव जागृत होनी चाहिए अब यह कैसे किया जाता इसलिए हाथी से प्रेरित होकर एक सूंड बनाई गई जो सदा हिलती रहती है और मनुष्य को अहसास करवाती है कि बुद्धि कभी सोनी नही चाहिए।
बुद्धिमान व्यक्ति कष्टो से परेशान नही होता बल्कि उसे अवसर बना लेता है। इसलिए परशुराम वाली कथा रची गयी और दाँत टूटने के बाद उन्होंने उसी से महाभारत लिखी यह कथा प्रचारित हुई। यह दर्शाता है कि बुद्धि अकर्मण्य हो चुकी वस्तु को कर्मण्य बना सकती है।
इस तरह निर्माण हुआ उस तस्वीर का जो आप नीचे देख रहे है, ये है आपके भगवान गणेश मगर वास्तव में ऐसे नही है। उनका महत्व बहुत अधिक है, हमारी आस्था गलत नही है मगर हम बिना महत्व को समझे अंधविश्वास की ओर बढ़ रहे है।
गणेश जी ना तो मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में बैठे है ना ही कैलाश पर्वत पर महादेव के निकट। वे सदा आपके दिमाग मे बैठे है वे आपको प्रतिउत्तर भी देंगे आपसे बात भी करेंगे यदि आपका मन निश्छल हो।
जब आप ऑफिस में होते है और एक्सेल में फार्मूला लगा रहे होते है वे ही आपकी बुद्धि को वलूक अप और पाइवोट की कमांड दे रहे होते है। मगर हम बस अपनी कॉलर ऊपर करके उठ जाते है और गणेश जी का धन्यवाद देना भूल जाते है।
दुर्भाग्य है हमारा की हम उन्हें मंदिर में तो बैठे देखना चाहते है मगर परहेज करते है उन्हें अपने साथ बैठाने और सुलाने से। जबकि वे तो सदा ही राह देख रहे है कि कब आप उनका सच्चे मन से स्मरण करें।
गणेश जी वैसे नही है जैसा आप उन्हें पूज रहे है उनका ये रूप तो हमारे पूर्वजों की विवशता है क्योकि हमारे ही कुकर्मो के कारण ज्ञानी जन हमे छोड़कर हिमालय निकल गए।
गणेश जी पर अपनी आस्था बनाये रखिये और यदि उनके अस्तित्व पर प्रश्न उठे तो इस पोस्ट को जरूर पढ़िए, गणेश जी 10 दिन बाद सिर्फ हमारे मंदिर से जाएंगे जो कि उनकी सही जगह वैसे भी नही है।
उनकी सही जगह तो हमारा ह्दय और बुद्धि है वे हमारी बुद्धि में सदैव चिन्हित है जब जब हम उसका प्रयोग मानव कल्याण और विकास के लिये करेंगे वे सदा साथ खड़े होंगे और वैसे ही मार्गदर्शन करेंगे जैसे एक बड़े भाई को छोटे का करना चाहिए।