आज पूछता है देश दूसरे के घर में चिंगारी लगाने का मजा कैसा होता है? ये सवाल है कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो से जो किया है हिन्दुस्थान ने.
दूसरे के घर में चिंगारी लगाने का खेल बुरा होता है. कल भारत में आग लगा रहे थे, आज खुद झुलस गए जस्टिन ट्रुडो.
एक बार फिर साबित हुआ कि आप खोदोगे गड्ढा तो खुद भी उसमे जरूर गिरोगे. दूसरों के घर में झुलसाने में अपने भी हाथ जल सकते हैं –भारत में चल रहे किसान आंदोलन को कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो हवा दे रहे थे और कनाडा के आतंकी संगठनों को मुक्त छोड़ा हुआ था किसानों को हर तरह का समर्थन देने के लिए.
अब आ गई अपने ऊपर. आज यही जस्टिन ट्रुडो अपने देश में भड़की आग में झुलस गए हैं और परिवार समेत गुमनामी के अँधेरे में छुपना पड़ गया जबकि नरेंद्र मोदी सामने खड़े रहे, किसी से नहीं भागे.
कनाडा के जो संगठन भारत में किसानों को समर्थन दे रहे थे, लंगर चला रहे थे, वो कनाडा में विद्रोह पर उतरे ट्रक चालकों को वैसा ही समर्थन दे रहे हैं.
जैसे नरेंद्र मोदी के किसान कानून किसानों के हक़ में थे, वैसे ही ट्रुडो का वैक्सीन का नियम जनहित में है –लेकिन भारत के जायज कानूनों के पर ट्रुडो ने लोगों को भड़काने की कोशिश की – आज उसके भी
जनहित के नियम के खिलाफ ट्रक चालक खड़े हो गए सड़कों पर चाहे नियम ठीक ही क्यों न हों.
अब भुगतो जस्टिन ट्रुडो, ये तो एक दिन होना ही था क्यूंकि जो नरेंद्र मोदी के खिलाफ बेवजह उलझता है,वो फिर उलझ कर ही रह जाता है.
इमरान खान दुनियां में अकेले हो गए, मलेशिया के महातिर मोहम्मद की कुर्सी गई; मालदीव के अब्दुल्ला यामीन की गद्दी गई; नेपाल के ओली को देर-सबेर हटना पड़ा; टर्की वाला फंस गया कंगाली में –और तो और राहुल गाँधी रोज नए झमेले में उलझे रहते हैं , आजकल जैसे हिन्दू और हिंदूवादी में अटके हुए हैं और भटके हुए हैं.
जस्टिन ट्रुडो और अन्य देशों को ये बात समझ लेनी चाहिए कि हर लोकतंत्र में सरकार को कमजोर करने वाली ताकतें काम करती हैं मगर किसी देश को स्वयं किसी दूसरे देश की हालत देख कर मौज नहीं लेनी चाहिए जैसा ट्रुडो ने किया.
भारत के विरुद्ध इस खेल में और भी कई संगठन और लोग शामिल थे, धीरे धीरे सब को भुगतना ही पड़ेगा क्यूंकि कुदरत अपना काम करती जरूर है, समय लगता है !