
भारत और अमेरिका दोनो ही देश रूस को अब भी सोवियत संघ समझ रहे है इसलिए भारत उस पर आँख बंद करके भरोसा करता है और अमेरिका 1% भी भरोसा नही करता है, उल्टा उसे दुश्मन की नजर से देखता है। ये दोनों ही पहलू हमारे हित मे नही है।
पहले एक विशाल देश सोवियत संघ हुआ करता था जिसकी राजधानी मॉस्को थी 1991 में ये देश 15 हिस्सो में टूट गया एक देश रूस बना और राजधानी मॉस्को रूस के हाथ मे आयी। चूंकि अंतरराष्ट्रीय पटल पर सोवियत संघ बिखरा था मॉस्को नही अतः दुनिया रूस को ही सोवियत मानने में लगी है।
सोवियत संघ एक कम्युनिस्ट देश था। कम्युनिस्ट पार्टी ने कभी सोवियत संघ को देश नही माना था क्योकि कम्युनिस्ट विचारधारा राष्ट्रवाद को नही मानती। इसलिए कम्युनिस्ट देशो में राष्ट्रपति का पद नही होता बल्कि पार्टी के सेक्रेटरी का पद होता है। शी जिनपिंग का विकिपीडिया देखिये वे राष्ट्रपति नही है कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चायना के जनरल सेक्रेटरी है। राष्ट्रपति तो हम जबरदस्ती कहते है।
बहरहाल रूस खुद को कम्युनिस्ट देश नही मानता, रूस लोकतंत्र होने का दावा करता है वो बात अलग है लोकतंत्र सिर्फ कागज पर है। रूस ने अलग देश बनते ही लेनिन और स्टालिन के पुतले गिराने शुरू कर दिये थे जो कि सोवियत संघ में बड़ी अहमियत रखते थे। रूस में राष्ट्रपति की आधिकारिक पोस्ट भी होती है जो गवाह है कि रूस अब कम्युनिस्ट नही रहा।
सन 2000 में व्लादिमीर पुतिन चाहते थे कि रूस नाटो का अंग बन जाये, मगर नाटो ने ये कहा कि पहले आप आवेदन कीजिये पुतिन आगे से झुकते नही है। नतीजा यह हुआ कि रूस नाटो का अंग नही बन सका, 2014 में रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया और अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिये।
रूस की अर्थव्यवस्था ऐसी तबाह हुई कि उसे चीन पर निर्भरता बढ़ानी पड़ी और आज रूस चीन का लगभग छोटा भाई बन गया है। यूक्रेन के मुद्दे पर नाटो और रूस आमने सामने आ गए थे और अमेरिका ने तब भी रूस पर और प्रतिबंध लगाने की धमकी थी।
अमेरिका समझ नही रहा है कि ये प्रतिबंधों का दौर गुजर गया है, भारत को पूरा प्रयास करना चाहिए कि किसी तरह रूस अमेरिका का करीबी बने और रूस पर से सारे प्रतिबंध हटे। रूस दुनिया की दूसरी सबसे शक्तिशाली सेना है, यदि तृतीय विश्वयुद्ध हुआ तो रूस की भूमिका वही होगी जो पानीपत में महाराज सूरजमल की थी।
अब तक दोनों विश्वयुद्ध अमेरिका और रूस/सोवियत संघ साथ मिलकर लड़े है इस बार भी उन्हें उस इतिहास को दोहराना चाहिए। बीजिंग का गिरना प्रारब्ध है बशर्ते रूस उससे दूर हो जाये । रूस चीन को मरने से बचा तो नही सकता मगर ऑक्सिजन दे सकता है।