व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन को सीरिया समझ बैठे यही उनकी सबसे बड़ी भूल है।
पहले युद्ध का फॉर्मेट होता था कि शत्रु की सेना को समाप्त करो फिर नगर लूटो। लेकिन अब समय बदल गया है द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से ही पहले शहरों को नष्ट किया जाता है फिर सेना से भिड़ते है इसलिए आजकल के युद्ध नुकसान ज्यादा करते है और किसी नतीजे तक नही पहुँचते।
2015 में सीरिया में इस्लामिक स्टेट का आतंक आसमान पर था और सीरिया की सेना बस राष्ट्रपति भवन की रक्षा में थी अर्थात राष्ट्रपति से 5 किमी दूर इस्लामिक स्टेट खड़ा था।
तब राष्ट्रपति बशर अल असद ने रूस को याद किया, रूस की वायुसेना सीरिया में उतरी और मात्र 2 दिनों में उन्होंने इस्लामिक स्टेट की कमर तोड़ दी। आज इस्लामिक स्टेट सिर्फ एक हिस्से में सिमट गया है या शायद समाप्त ही हो गया।
पुतिन को लगा कि यूक्रेन से भी ऐसे ही लड़ेंगे और एक दो दिन में कीव पर कब्जा कर लेंगे। लेकिन यूक्रेन और इस्लामिक स्टेट में अंतर है, यूक्रेन की सेना प्रोफेशनल है तथा यूक्रेन में 1991 के बाद से राष्ट्रवाद चरम पर है। रूस ने और एक गलती की वो यह कि ढेर सारी बिल्डिंग गिरा दी।
यूक्रेन की सेना के लिये आपने एक मजबूत बंकर वैसे ही बना दिया। इस्लामिक स्टेट में सिर्फ बगदादी पढ़ा लिखा था शेष तो आम मुसलमान थे जो पाँच वक्त के नमाजी, दाढ़ी रखने वाले और देश की जगह उम्मा को प्राथमिकता देने वाले थे। उन पर तो अमेरिका और रूस दोनो ने ही रसायनिक बम भी फेके। यूक्रेन में आप ऐसा नही कर सकते क्योकि यूक्रेन के लोगो की जिंदगी आतंकवादियो से ज्यादा कीमती है।
सीरिया बर्बाद हुआ लेकिन संभल नही सका जबकि यूक्रेन संभल जाएगा क्योकि लोग शिक्षित है। द्वितीय विश्वयुद्ध में लंदन भी खंडहरों का शहर हो गया था मगर वह फिर खड़ा हो गया। फिलहाल इस युद्ध का कही कोई अंत दिखाई नही देता, पुतिन ने 400-500 सैनिक तो सिर्फ यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेन्सकी को ढूंढकर मारने के लिये भेजे है।
पुतिन ने यह युद्ध लड़कर जेलेन्सकी को हीरो बना दिया है इससे अधिक कोई बड़ा परिवर्तन नही है।