पत्रकारिता के शिखर पर अपने बेबाक और बेलौस अंदाज़ को किसी परचम सा लहराने वाला कलम का एक सिपाही अलविदा कह गया. टीवी की दुनिया में सवालों को बुलंदी से दागने वाली एक आवाज़ ख़ामोश हो गई. जानेमाने जर्नलिस्ट-एंकर विनोद दुआ नहीं रहे. कोरोना काल में देश ने विनोद दुआ को खो दिया. 67 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस भरी. साल की शुरुआत में कोविड-19 से शुरू हुई उनकी जंग साल के आखिर में जिंदगी की डोर के साथ टूट गई. उनकी पत्नी पद्मावती ‘चिन्ना’ दुआ का भी जून में कोविड-19 के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ने के बाद निधन हो गया था.
विनोद दुआ की बेटी मल्लिका दुआ ने सोशल मीडिया पर पिता के निधन की खबर की पुष्टि की. रविवार 5 दिसंबर को विनोद दुआ का अंतिम संस्कार लोधी श्मशान घाट में होगा.
बेटी का भावुक कर देने वाला पोस्ट
कोविड 19 से ग्रसित होने के बाद विनोद दुआ पूरी तरह कभी उबर नहीं सके. उनकी सेहत में लगातार गिरावट आ रही थी. उनके निधन से कुछ घंटे पहले ही मल्लिका ने अपने इंस्टाग्राम पर पिता की एक तस्वीर शेयर कर एक इमोशनल पोस्ट लिखी थी.
मल्लिका ने लिखा, ‘मेरे पिता इस वक्त लड़ रहे हैं और कोई अंदाजा नहीं है कि यह एक हारी हुई लड़ाई है या कुछ और. किसी भी तरह से जो हमेशा याद रखना चाहिए वह यह है कि एक अच्छी तरह से जिया गया जीवन एक अनावश्यक रूप से लंबे समय तक भय और निराशा में जीने की तुलना में कहीं ज्यादा कीमती है.’
दिल्ली में हुआ था विनोद दुआ का जन्म
विनोद दुआ का जन्म दिल्ली में 11 मार्च 1954 को हुआ था. कहा जाता है कि उनके माता-पिता का ताल्लुक पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनवा से था और वो 1947 में बंटवारे के दौरान भारत आ गए थे. विनोद दुआ ने दिल्ली के हंसराज कॉलेज से इंग्लिश लिटरेचर में पोस्ट ग्रैजुएट किया.
1975 में युवा जन कार्यक्रम और जवान तरंग से जुड़े और 1980 तक इसके लिए काम करते रहे. 1981 में विनोद दुआ ने आप के लिए कार्यक्रम में एंकरिंग की. 1984 के दौरान दूरदर्शन की ओर से आयोजित चुनावी चर्चा ने उनके करियर में मील का पत्थर साबित हुआ. वो देश के नामचीन न्यूज़ चैनलों में अपनी एंकरिंग से नए आयाम गढ़ते चले गए. 1996 में विनोद दुआ को रामनाथ गोयनका पुरस्कार मिला. 2008 में वो पद्मश्री से सम्मानित हुए. इसके अलावा पत्रकारिता के क्षेत्र में लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए मुंबई प्रेस क्लब ने साल 2017 में उन्हें रेडइंक अवॉर्ड देकर सम्मानित किया.