द्वितीय विश्वयुद्ध के समय एक तसवीर बहुत चर्चित हुई थी जिसे बिग थ्री के नाम से जाना गया था। इसमें ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल बैठे है बीच मे अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रुजबेल्ट और फिर सोवियत संघ के तानाशाह जोसेफ स्टालिन।
रुजबेल्ट की बॉडी लैंग्वेज आपको अजीब लग रही होगी दरसल पैरालिसिस की वजह से उनका आधा शरीर निष्प्राण था। जोसेफ स्टालिन दुखी दिख रहे है क्योकि जर्मन सैनिकों ने उनके बेटे को बेरहमी से मारा डाला था वही हमारे विंस्टन चर्चिल बड़े खुश है।
2 साल तक बंदा अकेला अपनी दम पर हिटलर से लड़ा और फिर भी इंग्लैंड और भारत को बचाये रखा, अमेरिका और सोवियत तो मजबूरी में युद्ध मे कूदे थे।
इन सबमे सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जब भारत के लोग ब्रिटेन के साथ थे तो भारत को विश्वयुद्ध का भाग क्यो नही माना गया? हम क्यो फर्स्ट वर्ल्ड नेशन नही है? हमे क्यो तीसरी दुनिया का देश कहा जाता है?
बात 1940 की है ब्रिटेन की राज्यसभा अर्थात हाउस ऑफ लॉर्ड्स में ब्रिटिश प्रधानमंत्री चैम्बरलीन का विरोध हो रहा था क्योकि वे हिटलर से संधि की सोच रहे थे। विरोध इतना बढ़ गया कि ब्रिटेन के राजा जॉर्ज छठ ने विंस्टन चर्चिल को प्रधानमंत्री बनाया, चर्चिल ने ऐतिहासिक भाषण दिया और बहुमत भी कब्जा लिया।
जब चर्चिल प्रधानमंत्री बने तो हिटलर को भी चिंता हुई मगर 6 हफ्ते में फ्रांस ने घुटने टेक दिए और पेरिस पर हिटलर का कब्जा हो गया। पूरे यूरोप में सिर्फ ब्रिटेन बचा था, भीषण युद्ध आरंभ हो गया। जर्मन वायुसेना ने लंदन को खंडहर बना दिया था मगर कब्जा नही कर सके।
यहाँ भारत जो कि उस समय ब्रिटेन का उपनिवेश था उससे भी ब्रिटेन को सैन्य मदद मिल रही थी। भारत के लोग शुरुआत में विंस्टन चर्चिल को बहुत पसंद करते थे क्योकि ये वो नेता थे जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड का विरोध किया था, विंस्टन चर्चिल ने कई बार भारत के मुद्दे लंदन में उठाये थे।
लेकिन चर्चिल एक छुपे हुए तानाशाह थे, युद्धकाल में ही बंगाल में अकाल पड़ा। बंगाली भूखे मर रहे थे और उनका गेंहू चर्चिल सेना को दे रहे थे, चर्चिल ने मीडिया के सामने अपार दुख व्यक्त किया यूट्यूब पर आज भी उनका वीडियो है आप देखिए उन्हें कितना दुख है।
लेकिन जैसे ही कैमरा हटा उन्होंने अपने सचिव से कहा मरते है तो मरने दो खरगोश की तरह अपनी तादाद बढ़ाते है और खाना मुझसे मांगते है।
तो कुछ ऐसी सोच थी विंस्टन चर्चिल की, दरसल इन्हें लोगो को मरता देखने मे बड़ा मजा आता था। इंग्लैंड में तो ये अपनी क्रूरता की वजह से ही प्रसिद्ध थे, इनके नेतृत्व में 2 साल ब्रिटेन अकेला लड़ा। हिटलर ने विचार किया था कि उसे दिल्ली पर भी बम गिराने चाहिए लेकिन नाजी अफसरों का मानना था कि इससे भारत के लोग स्वतंत्रता आंदोलन छोड़ ब्रिटेन के ही साथ आ जाएंगे।
हिटलर ने जब देखा कि ब्रिटेन हार नही रहा तो उसने अपने ही दोस्त सोवियत संघ पर धावा बोल दिया। इस तरह भगवान ने विंस्टन चर्चिल को बचाया, सोवियत के तानाशाह जोसेफ स्टालिन क्रूरता में हिटलर से आगे थे। दूसरी ओर जापान की वजह से अमेरिका भी मैदान में आ गया इस तरह बाजी पलट गई और जर्मनी ध्वस्त हुआ।
भारत के सैनिकों का योगदान अतुल्य था विंस्टन चर्चिल ने उन्हें सम्मान दिया और ब्रिटिश सैनिकों की बराबरी पर नाम अंकित करवाये मगर प्रश्न फिर वही आता है कि भारत को इसका क्रेडिट क्यो नही मिलता? अब तक सिर्फ अमेरिका ने भारत की परवाह की वो भी एक ही बार, व्हाइट डी आइजनहावर जब अमेरिका के राष्ट्रपति थे तब वे भारत आये थे और उन्होंने नेहरूजी को दो ऑफर दिये थे।
एक कि भारत परमाणु बम बनाये और दूसरा संयुक्त राष्ट्र का स्थायी सदस्य बन जाये। लेकिन नेहरूजी ने सदस्यता चीन को दे दी और परमाणु बम पर ना तो आइजनहावर की सुनी ना ही डॉ होमी जहाँगीर भाभा की। इसका नतीजा यह हुआ कि हम 20 वर्ष पीछे चले गए।
लेकिन अब हमारे पास शक्तिशाली सरकार है भारत को वीटो का नही मगर विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के राजा के लिये किये गए अपने बलिदान को क्लेम करना चाहिए। हम तीसरी दुनिया के देश नही है अमेरिका, ब्रिटेन और रूस की तरह हमने भी दोनो विश्वयुद्ध लड़कर जीते है।
भारत को फर्स्ट वर्ल्ड के टैग पर अपना अधिकार मांगना चाहिए ताकि बाद में यही अधिकार वीटो के लिये भी मांगा जा सके।
